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बाल हठ - बाल कविता ( सुब्रत आनंद )

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इस दुनिया को गुलाब कर दूँ क्या ?

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भूमिपुत्र किसान हैं हम

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अपने अभिलाषाओं में तुम, मत इनका बचपन झोंको

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प्यार के रंग सा दूजा कोई नहीं

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सुनो सब कुछ है स्वीकार मुझे

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आज मुझको नहीं है खबर ज़िंदगी

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हूँ नहीं मैं बोझ पापा बेटियाँ कहती रही

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जिन्दगी - सुब्रत आनंद

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गुरुदेव के चरणों में...

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कुछ दोहे...

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वेदना किससे कहें..?

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