भूमिपुत्र किसान हैं हम

 

 धरा- धरती की शान हैं हम
भूमि- पुत्र का नाम हैं हम
सबकी भूख मिटाते हम
फिर भी आधी खाते हम
ये कैसी बदहाली छाई है
क्यों ऐसी बेहाली आई है
लाख आये विपदा मगर
छोड़ते नहीं हम ये डगर
प्रकृति की शान हैं हम
हाँ..एक किसान हैं हम...!!

खामोश सी शाम हैं हम
हलधर बलराम हैं हम
छाई भले उदासी हो
चाहे दिखे उबासी हो
मेहनत का अंजाम हैं हम
खास नहीं आम हैं हम
मचे भले प्रकृति का कहर
ध्यान रहता है चारों पहर
श्रम का दूजा नाम हैं हम
हाँ... एक किसान हैं हम...!!
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नाम- सुब्रत आनंद
शहर- जोठा, बाँका(बिहार)
 

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