बाल हठ - बाल कविता ( सुब्रत आनंद )


बाल हठ

सब साथी तैयार खड़े थे
कुछ छोटे कुछ बहुत बड़े थे
जाने थे हम सबको मेले
मस्ती करते खाते केले
कहते साथी चल जल्दी से
माँगो पैसे माँ- दीदी से
नहीं दे रहे कोई पैसे
साथी को बतलाऊँ कैसे ?
सोच- सोच कर शामत आई
कुछ न भाता अब हमें भाई
बोलो कैसे करूँ कमाई?

पाँच रुपैये मिले बाबा से
घूमूँगा मैं बड़े मजे से
सोच- सोच मैं खुश होता था
रस्ते भर सपने बोता था
एक रुपये की हवा- हवाई
दो रुपये की नाव सवारी
दो रुपये का लिया खिलौना
बिन पैसे मन हुआ अनमना
मन ललचाया देख मिठाई
पूछ रहा मैं फिर से भाई
बोलो कैसे करूँ कमाई ? 

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