सुनो सब कुछ है स्वीकार मुझे


तुम समझ सके न मूल्य प्रेम का, तुझे दिखा दगा बस दगा प्रिये
जब हृदय में ही प्रेम नहीं तो, सुनो सब कुछ है स्वीकार मुझे

एकाकी भरे जीवन में जब, मिला तेरा मुझको साथ सनम
मैं भावविभोर सा मग्न रहा, अब धन्य हुआ मेरा ये जनम
भूल बैठा सब बातें अपनी, बस याद रहा तेरा मृग नयन-
कहो समझाता खुद को कैसे, अब नहीं है तुझसे प्यार मुझे
जब हृदय में ही प्रेम नहीं तो, ......................।

जब तनहा हो चला राहों में, कभी भाया न मुझको वो सफर
था कितना प्यारा सुकून भरा, संग कभी गुजरा हर वो डगर
कहाँ होता मुझको भी यकीन, साथ छोड़ा है तुमने मेरा-
खुद पर गुजरी सभी बातों पर, होता नहीं अंगीकार मुझे
जब हृदय में ही प्रेम नहीं तो, ...................।

ख़ुशी जीवन से अब लुप्त हुई, भरा गम का बस गुब्बार विकट
नहीं भाता मन का सूनापन, सदा रहती तेरी याद निकट
नींद भी जैसे अब ओझल है, मैं ढूँढता तुझको डगर- डगर-
विदित मुझको है बस इतना ही, भायेगा न अब संसार मुझे
जब हृदय में ही प्रेम नहीं तो,.......................!!


नाम- सुब्रत आनंद
शहर- जोठा, बाँका(बिहार)

टिप्पणियाँ

Emotions
Copy and paste emojis inside comment box

Archive

संपर्क फ़ॉर्म

भेजें