अपने अभिलाषाओं में तुम, मत इनका बचपन झोंको

 

अपने अभिलाषाओं में तुम, मत इनका बचपन झोंको
है करबद्ध निवेदन इतना, इस कुकृत्य को तुम रोको
              🌹 १ 🌹
अभी तो वय हुई है इनकी, खेलने और खाने की
क्यों लाद रहे इनके सर पर, इतनी बोझ किताबों की?

मचाते जिस उम्र में बच्चे, घर में खूब शैतानियाँ
मन हर्षाता देख- देखकर, इनकी सहज नादानियाँ

अब इनकी अल्हड़ता पर तुम, मत इनको रोको- टोको
अपने अभिलाषाओं में तुम, मत इनका बचपन झोंको
              🌹 २ 🌹
इनकी ही आँखों में सुन लो, स्वप्न सलोना चलता है
इनके ही प्रबुद्ध मस्तक में, अपना भारत पलता है

देखते हैं ये जयी सपने, नित दिन अपने ख्वाबों में
छीनते क्यों इनका तुम ख़्वाब, बाँधकर इन किताबों में?

नहीं निज स्वार्थ के सिद्धि हेतु, इनपर तुम रोटी सेंको
अपने अभिलाषाओं में तुम, मत इनका बचपन झोंको
             🌹 ३ 🌹
इसके बोझ तले ये बच्चे, बचपन ही बिसरा देंगे
खुद को तन्हा मान- मानकर, जीवन दुखद बना लेंगे

इनको उड़ने दो इस नभ के, विस्तृत उन्मुक्त परिधि में
ढूँढेंगे ये रस्ता इक दिन, स्वयं की जीत समृद्धि में

बन जाओ तुम पथ के साथी, पथ पर मत पत्थर फेंको
अपने अभिलाषाओं में तुम, मत इनका बचपन झोंको..!!


सुब्रत आनंद
जोठा, बाँका (बिहार)

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