कुछ दोहे...

सपने होते सच वही, दिखें जो खुली आँख
पंछी उड़ते तब तलक, जब तक रहते पाँख...!!

बचपन के वो दिन कहाँ, बस उसकी है याद
वो गाँव की मस्तियाँ, मिली न उसके बाद...!!

नहीं शहर भाता मुझे, भूला सका न गाँव
वो अल्हड़ अठखेलियाँ, वो बरगद का छाँव...!!

फ़ीकी है मुस्कान अब, फ़ीकी जग की रीत
ले चलो कहीं दूर अब, मुझको मेरे मीत..!!

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