आज मुझको नहीं है खबर ज़िंदगी

 

आज मुझको नहीं है ख़बर जिंदगी

लग गयी है मुझे ज्यों नज़र जिंदगी


हूँ परेशां बहुत क्या करूँ क्या नहीं?

खत्म होने लगी है सफ़र जिंदगी


अब सुहाता नहीं है मुझे ये जहाँ

रोज डसती मुझे बन ज़हर जिंदगी


गर थमे ये कभी चैन की साँस लूँ

है डुबाती रही बन लहर जिंदगी


आग में तप रहा मोम जैसा "सिफ़र"

और ढाती हमेशा क़हर जिंदगी..!!


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