वेदना किससे कहें..?

नैनों में चुभने लगा, जैसे कोई तीर
कैसे किसको हम कहें, अपने मन की पीर..!!

जीवन के हर मोड़ पर, दोगे मेरा साथ
फिर क्यों तूने थाम ली, अब दूजे का हाथ..?

रोग लगा कर प्रेम का, नहीं निभाई प्रीत
कहता मेरा मन सदा,  कैसी जग की रीत...?

सब कुछ तुझपर वार कर, करना चाहा प्यार
दिल से दिल के खेल में , मिली मुझे बस हार।

टूटा मेरा ख़्वाब था, बिखरी थी हर आस
अब न होगी फिर कभी, भूले भी विश्वास..!!
© सुब्रत आनंद....(स्वरचित)

टिप्पणियाँ

Archive

संपर्क फ़ॉर्म

भेजें