जिन्दगी - सुब्रत आनंद

 


तुम देख सकते हो,

हमारे अंदर की तन्हाई

जो बसी हुई है

जन्म- जन्मांतर से 

हमारे हृदय की 

गहराइयों में,

एक लंबी टीस सी

खा रही हमें 

भीतर ही भीतर

उससे जल्द ही

पाना है निज़ात

ताकि बन सको 

जिंदगी मेरी

हाँ तुम.....हाँ तुम ।।


सुब्रत आनंद

बाँका (बिहार )

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